पहला प्यार: एक सफर, एक मुलाकात -2

 कहानी का पिछला हिस्सा 


प्रिया पहले उस बच्ची के द्वारा पूछे गए सवाल को इग्नोर करने की सोच रही थी, ऐसा मुझे लगा। लेकिन तभी उस बच्ची ने प्रिया के हाथों को मेरी तरफ इशारा करते हुए पूछा, "कौन हैं ये? आपके बॉयफ्रेंड हैं क्या?"

मेरे रोंगटे खड़े हो गए। प्रिया मुस्करा दी और मेरी ओर देखी। मैं थोड़ा शरमा गया और अनकंफर्टेबल फील करने लगा। तभी ट्रेन की बोगी में चिप्स-बिस्किट बेचने वाला आया। मैं चाहता था कि उस बच्ची को कुछ खरीदकर दूँ। मैंने बिना उससे पूछे चिप्स वाले से कहा, "भैया, चिप्स और बिस्किट्स इधर देना।" बच्ची टकटकी लगाकर मुझे देख रही थी। तभी प्रिया ने उस बच्ची से पूछा, "तुम्हें कुछ खाना है?"
और मेरे मुँह से निकला, "प्रिया, इसी के लिए तो लिया हूँ।"

जब मैं बच्ची को पैकेट दे रहा था तो वह थोड़ा लेने में हिचकिचा रही थी। तभी प्रिया ने उसके कान में कुछ कहा और बच्ची झट से मेरे पास आ गई। वह मेरे बगल में बैठकर चिप्स का पैकेट फाड़ने के लिए मुझसे बोलने लगी।

सभी लोग पता नहीं क्यों चोरी-छिपे मुझे और प्रिया को ही घूर रहे थे। बच्ची ने एक और सवाल किया, जिससे वहाँ बैठे सभी लोग सन्न रह गए। उसने पूछा, "मैं आपको क्या बुलाऊँ?" प्रिया फिर मेरी तरफ एक इमोशनल लुक के साथ देख रही थी। मैं सोच रहा था कि कुछ ऐसा बोलूं जिससे वह दूसरा सवाल न पूछ बैठे।
तभी मैंने बच्ची से कहा, "आप मुझे 'दोस्त' बोल सकती हो।"
यह कहते हुए जब मैंने प्रिया की ओर देखा तो वह मुस्कुरा रही थी और अपनी एक हाथ की उंगली को दूसरे हाथ से दबा रही थी।

ट्रेन चले हुए 3-4 घंटे हो चुके थे और मुझे अब तेज भूख लग रही थी। लेकिन प्रिया के इतने लोग वहाँ ऊपर-नीचे बर्थ पर बैठे थे कि समझ नहीं आ रहा था कि कैसे कुछ खाऊं। तभी दीदी का कॉल आया। उस वक्त मेरे पास Samsung Guru का एक छोटा CDMA फोन था। जब उस पर कॉल आती थी तो लो वॉल्यूम पर भी बगल में बैठा व्यक्ति सुन सकता था कि मैं क्या बात कर रहा हूँ।

दीदी ने पूछा, "टिकट तो स्लीपर या एसी का जब हुआ ही नहीं तो कैसे जा रहे हो?"
मैं देख रहा था कि प्रिया भले ट्रेन की विंडो से बाहर झाँक रही थी, लेकिन कहीं न कहीं उसका ध्यान मेरी बातों पर था। मैंने दीदी से कहा, "मेरी एक दोस्त भी जा रही है ट्रेन से, उसी ने एक सीट मुझे दे दिया है।"
मैंने देखा कि ऐसा कहते ही प्रिया विंडो से बाहर देखते-देखते मुस्कुरा रही थी।

दीदी ने फिर पूछा, "तुम तो खाना खाए बिना निकले थे हॉस्टल से। कुछ खाया कि नहीं? टाइम भी हो गया है, खा लो कुछ।"
मैंने कहा, "हाँ, खाऊंगा।" और फिर कहा, "ठीक है, दी बाद में बात करेंगे।"

फोन रखते ही प्रिया मेरी ओर देखी और बोली, "आप खा लो न इधर ही। इतना मत सोचो कि कौन है यहाँ पे?"
मुझे यही लग रहा था कि देखो न, मुश्किल से 4 घंटे ही हुए हैं और कितना समझने लगी है मुझे ये? फिर भी मैं रुका रहा और बोला, "अच्छा, कुछ टाइम में खाते हैं।"

तभी उस ट्रेन बोगी में एक लड़का आया और बोला, "प्रिया दी, पिछली बोगी में सबको बुलाया जा रहा है खाने के लिए।" प्रिया ने कहा, "ठीक है, तुम जाओ। हम सब आते हैं।" धीरे-धीरे उसके सभी लोग हमारी बोगी से जाने लगे। मन में एक अजीब बेचैनी हो रही थी और ऐसा लग रहा था कि यह भूख के कारण है।

सब लोग जा रहे थे और प्रिया सबको कह रही थी, "आगे चलो, कोई आता है तो मैं आउंगी।" बच्ची भी जा रही थी। जाते-जाते उसने कहा, "दोस्त, चलो मेरे साथ। मैं अपनी मम्मी से मिलाऊँगी और वहीं पे खा लेना।"
मैं मुस्कराया और कहा, "नहीं-नहीं बाबू, तुम जाओ। मैं खाना लेकर आया हूँ।"
सब लोग चले गए वहाँ से। अब सिर्फ उस बोगी में मैं और प्रिया थे।

प्रिया पता नहीं अपने बैग में कुछ ढूंढ रही थी और टेंशन में दिख रही थी। मैंने सोचा कि पूछूं, फिर लगा कि पता नहीं कुछ रिएक्ट न कर दे। फिर भी हिम्मत करके मैंने पूछा, "क्या हुआ प्रिया, ऑल ओके?"
वह बोली, "अरे यार, एक रिंग थी वो मिल नहीं रही है।"
मैंने पूछा, "पहन रखी थी क्या?"
वह बोली, "नहीं याद है।" तभी मेरी नजर उसके पैर के पास पड़े पेपर के टुकड़े पर गई। उस पर रिंग गिरा था।

मैं बोल उठा, "प्रिया, तुम टेंशन मत लो। मैं हूँ न।"
यह सुनकर उसने मेरी तरफ देखा और मेरे हाथ में उसका रिंग था। रिंग देखकर प्रिया रोने लगी। उसकी आँखों में आँसू थे। मेरे हाथ से लेकर वह सीट पर बैठ गई और अपने चेहरे पर हाथ रख लिया।

मुझे समझ नहीं आया कि उसने ऐसा क्यों किया? फिर उसने तुरंत रूमाल से चेहरा पोछा। मैं बस उसे देखता रह गया। मैंने पूछा, "हुआ क्या प्रिया? सब ठीक है न?"
उसने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ-हाँ, सब ठीक है। आप खाना खा लो न, लेकर आए हैं क्या?"

यह सुनकर ही मेरा पेट भर चुका था। मैंने कहा, "हाँ, लेकर आया हूँ। एक पंजाबी ढाबा है मेरे कॉलेज के पास। जब भी कोई घर के लिए जाता है तो वहीं से पैक कराता है।"
मैं खाना निकालने लगा और वह चुपचाप मुझे देख रही थी। अच्छा हुआ कि वेज-बिरयानी पैक कराते वक्त मैंने दो प्लेट ले ली थीं। सीट पर एक पेपर डाला और बिरयानी प्लेट पर रख दी।

प्रिया ने अपनी आँखों से इशारा करते हुए पूछा, "क्या हुआ?"
मैंने कहा, "कुछ नहीं। आप भी खाओ।" और मैं एक प्लेट उसकी ओर बढ़ाया। वह मुझे देखती रही और मैं प्लेट पकड़े हुए था। तभी वह वहाँ से उठी और चली गई। बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे।

मैंने सबसे पहले अपनी नजर इधर-उधर दौड़ाई कि किसी ने देखा तो नहीं। मुझे बहुत बुरा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे ट्रेन रुक जाए और मैं यहीं उतर जाऊं। बस एक ही बात दिमाग में चल रही थी कि क्यों उसे कहा कि आप भी खाओ?

अब तक जो ट्रेन का सफर जिंदगी का सबसे सुहाना सफर लग रहा था, वह एक ही झटके में बेकार लगने लगा। भूख भी तेज लगी थी, फिर भी खाने का मन नहीं था। मैंने प्लेट को बैग में रखने लगा।

कहानी का अगला हिस्सा जल्द आएगा।

Picture Credit :https://www.freepik.com/ 


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